बुधवार, 2 जनवरी 2008

भगत सिंह का ब्रान्डीकरण

भगत सिंह कुछ समय से कुछ अधिक चर्चा में हैं। कई खेमों के लोग अपने-अपने ब्रांड का स्टीकर लेकर भगत सिंह के ऊपर चस्पा करना चाहते हैं। कोई यह साबित करने पर तुला है कि वह 'मेड इन फलाना थे', कोई यह साबित करने पर तुला है कि वह 'मेड इन ढीकाना' थे। वह किन-किन लोगों से मिले और उन्होने अपने जीवन मैं कौन-कौन सी किताबें पढ़ी हैं। इसकी अपनी-अपनी सुविधा से लोग व्याख्या करने पर जुटे हैं। इन सारी स्थितियों और परिस्थितियों को देखने के बाद लगता है कि यह विचारधारा के ब्रान्डीकरण का दौर है। अपनी विचारधारा को सक्षम और सशक्त ब्रांड साबित करने के लिय इसके नाम पर अपनी दुकान चलाने वालों को कुछ तो प्रोडक्ट दिखाना ही होगा। यहाँ मार्क्स की पंक्ति याद आती है, 'इश्वर का लाख-लाख शुक्र है मैं मार्क्सिस्ट नहीं हूँ।' वास्तव में जब भी कोई तंत्र खड़ा होता है और बड़ा होता है तो उसकी शक्ति वह मंत्र होती है, जिसपर वह तंत्र खड़ा होता है। जब तंत्र विकसित हो जाता है तो लोग अक्सर मंत्र को भूल जाते हैं। जबकि यह गलत है। वास्तव मैं इन मंत्रों मैं इतनी ताकत है कि किसी को भी भगत सिंह बना दे। बस चाहिय भगत सिंह जैसी सच्ची निष्ठा और उनके जैसी दृष्टि। कोशिश ऐसी हो कि आपको कुछ साबित ना करना पड़े। आपके विचार की गर्मी को दुनिया महसूस करे और विचारधारा का लोहा दुनिया माने। यदि आपके हाथ मैं 'विचारधारा' नाम की कोई कीमियां है, जिसके सम्पर्क में आकर भगत सिंह, भगत सिंह हो गए तो इस कीमिया को आपने अब तक अपने देश के युवाओं से छुपा के क्यों रखा है। अगर आपकी बात में ज़रा भी सच्चाई है तो आगे आइय और इस देश के हर युवा को 'भगत सिंह' हो जाने दीजिय।

चिराग के दोहे

तलवे याद न रख सकें मिट्टी का एहसास
इतना ऊंचा मत करो सपनों का आकाश
समझ समझ की बात है, समझ समझ का फेर
सब उसके ही नाम हैं, राम रहीम कुबेर
एक संग आकर कहें, कातिक औ' रमजान
एक जिल्द में बाँध दो, गीता और कुरान

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम