सोमवार, 30 जून 2008

नंदीग्राम: जंगलराज कायम है


यह तस्वीर नंदीग्राम के केनबाडी गाँव के सुदामा नायक की है। उन्होंने अपने पांव के टूटे हुए हड्डियों का एक्स - रे दिखाया। वे अपने पाँव पर खड़े नहीं हो सकते। मार-मार कर उनके पाँव की हड्डी तोड़ दी गई। वजह सिर्फ़ इतनी है कि उन्होंने वहाँ सी पी एम को वोट देने से इनकार किया। यह हालत इस वक़्त पूरे नंदीग्राम की है। हर तरफ़ आतंक का माहौल है। स्थानीय लोगों ने बताया तेखाली के रस्ते तलपट्टी नहर को पार करना अपने जान पर खेलने जैसा है। क्योंकि उसके आस-पास दर्जनों बंदूकधारी सी पी एम के लोग खड़े हैं। वहाँ जिस तरह अब भी स्थानीय लोगों पार्टी के डराया धमकाया जा रहा है, उसे देखकर लगता है, वहाँ लोकतंत्र नहीं जंगल का राज कायम है।

शुक्रवार, 27 जून 2008

ब्रजेश्वर मादान

ब्रजेश्वर मदान वरिष्ठ पत्रकार हैं। श्रेठ तरीके से हिन्दी में फ़िल्म और कला के विषय में लिखने और समझने वाले गिने-चुने पत्रकारों में आते हैं।
उन्होंने इस ब्लॉग के लिए अपनी दो कविताएं उपलब्ध कराई। आभार

खाली हाथ

चमेली की जो बेल

लगाई थी तुमने

दूसरी मंजिल पर

दरवाजे तक आ गई है

तुम्हारे जाने के बाद

बिना फूलों के

जैसे बरसों बाद

कोई घर लौटे

खाली हाथ

और ठिठक कर

खड़ा रह जाए

दरवाजे पर।

भूख

अब तक है याद

उस आलू का स्वाद

जो तुम्हारे खाने

से उठाकर खाया

और लगा कि

आलू का एक छोटा सा

टूकडा भी

मिटा सकता है

सदियों की भूख

जो नहीं मिटा सकती

जो नहीं मिट सकती

दुनिया भर के खाद्यान से।

गुरुवार, 26 जून 2008

प्रेस नहीं रेस


मृत्युंजय जहानाबाद के एक अखबार में पत्रकार हैं, पिछले दिनों उनसे मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान मेरी नजर उनके मोटरसायकल पर गई। लिखा था रेस। 'भाई साहब यह रेस का अर्थ क्या होता है।' (वैसे प्रेस का आज अर्थ है पी आर अच्छा
हो तो -इ एस- ऐश) खैर मृत्युंजय भाई ने बताया, बिहार में कोई प्रेस नहीं है (पत्रकारिता के अर्थ में) यहाँ तो आगे निकालने की रेस (होड़) ही लगी है।
अब भाई साहब को कौन बताए कि दिल्ली और भोपाल में यह रेस और भी तेज है। अन्य जगह भी हालत कोई सुधरी हुई नहीं है।

बुधवार, 25 जून 2008

हम भूईहार हैं













अरवल (यह जहानाबाद से कटकर अलग हुआ जिला है, नरसंहारों की वजह से १९८० से २००० तक बदनाम रहा) जिलान्तर्गत सेनारी गाँव से ०३ किलोमीटर की दूरी पर एक गाँव है मंझीयामा। यह सभी बच्चे वहीं खेलते हुए मिले। यह बच्चे बहूत ही प्यारे लग रहे थे इसलिए इनकी फोटो लेने के लिए मैंने अपना कैमरा बाहर निकाल लिया । कैमरा देखकर एक बच्चा अपने साथियों से अलग जाकर खड़ा हो गया, मैंने जब कहा साथ आ जाओ तो उसका जवाब था मेरा फोटो लेना है तो अकेले में लीजिए। इनके साथ नहीं।
मैंने जिज्ञासा वश पूछ लिया इनके साथ आने में क्या कठिनाई है, बच्चे का जवाब चौकाने वाला था, 'आप नहीं जानते, हम भुईहार (भूमिहार) हैं।
क्या कोई बता सकता है कि इतने छोटे से बच्चे के दिमाग में जातिवाद का जहर कहाँ से आया है? उसे किसने समझाया की सिर्फ़ भूमिहार हो जाने की वजह से वह श्रेष्ठ हो गया। क्या हम सचमुच २१ सदी में प्रवेश पा चुके हैं, या यह कोई भ्रम है।

मंगलवार, 24 जून 2008

ट्रेन में भिखारी कलाकार


इस कलाकार से मेरी मुलाकात दिल्ली से पटना जाते हुए मगध एक्सप्रेस में हुई थी। यह कलाकार मुझे ट्रेन में भीख मांगता हुआ, आरा के पास मिला। यह ठीक से बोल नहीं सकता, ठीक से देख भी नहीं सकता। लेकिन बिना किसी वाद्य यन्त्र की सहायता लिए यह जिस तरह की ध्वनी निकाल रहा था, वह काबिलेगौर ही नहीं, काबिलेतारीफ भी था।
क्या किसी रियलिटी शो में इसे जगह मिल सकती है?










सोमवार, 23 जून 2008

सड़क पर कोलकाता - चन्द तस्वीरें
















सोए हुए इस आदमी की तस्वीर कोलकाता राजभवन (विधान सभा) के मुख्य द्वार से महज १०० कदम की दूरी पर ली गई है।

रविवार, 22 जून 2008

दिल्ली मेट्रो में घ्यान दें

दिल्ली मेट्रो में जो चढ़े हों उनके लिए यह सूचना जानी- पहचानी सी होगी।
लेकिन कोई यह तो बताए कि यह 'घ्यान' रखते कैसे हैं?
मेरी बात पर ज़रा 'ध्यान' दीजिएगा जनाब।

मंगलवार, 10 जून 2008

रोइंग मास्टर अजय कीर


आदिवासी छात्र अजय कीर वाटर स्पोर्ट्स रोइंग का खिलाड़ी है। उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिताजी नाव में सिंघारा निकालने जाया करते थे। सिंघारा एक जलीय फल है, जो पोखर और तालाबों में होता है। अजय की नाव और पानी के साथ पहली यारी यही हुई। जब वे तालाब में सिंघारा निकालने गए। बाद में रोजगार की जरूरत महसूस हुई, उसी दौरान भोपाल में किसी ने वाटर स्पोर्ट्स सेंटर का पता बताया। यहीं से अजय के जिंदगी में रोइंग का प्रवेश हुआ। अजय कीर रोइंग में मध्य प्रदेश के लिए एक स्वर्ण पदक लेकर आए। ग्रामीण युवा केन्द्र द्वारा बनाई गई एक फ़िल्म में भी अजय नजर आते हैं। वर्त्तमान में भोपाल स्पोर्ट्स सेंटर में अजय बतौर लाइफ गार्ड नियुक्त हैं। (सोपान स्टेप में प्रकाशित)

रविवार, 8 जून 2008

आज खबर नहीं है,
किसी समाज की तरक्की,
किसी शहर का अमन,
किसी मासूम चेहरे की हँसी,
किसी बेरोजगार स्त्री का
किसी भी कस्टिंग काउच से
साफ़ बच निकलना खबर नहीं है।

खबर है हत्या, लूट, घोटाले,
बेईमनी और बलात्कार,
रविना, उर्मिला करीना के गॉशिप्स,
युवतियों के शरीर पर कम होते कपडे,
खबर है,
होटल में करते व्यभिचार
दो गए पकडे।

भाईजानमेहरबान, कद्रदान,
यह युग खबरों का नहीं है,
यह युग है सनसनी का,
यह युग समाचार का नहीं है,
यह युग है टी आर पी का।

मतलब साफ है स्पष्ट है,
बाजार में समाचार नहीं बिकता
सनसनी बिकती है।

शनिवार, 7 जून 2008

ब्लॉग स्पेशल अंक - रचनाएँ आमंत्रित

मीडिया स्कैन का आगामी अंक ब्लॉग स्पेशल होगा।
इसके लिए आप मित्रों से सहायता अपेक्षित है।
इसके लिए आप अपनी रचनाएं मेल कर सकते हैं
हमारा पता है :-
mediascaner@gmail.com

मीडिया स्कैन : भावी पत्रकारों का अखबार

गुरुवार, 5 जून 2008

रिअल ब्रेकिंग न्यूज़


शिखा अग्रवाल का मेल वाया बी राघव मेरे पास आया। जिसमे लिखा गया था कि बहूत दिनों के बाद इतना बेहतरीन मेल देखने को मिला।


चलिए यह बेहतरीन मेल आप लोगों तक पहुंचा दी जाए।












जिसका शगल ही कैरिअर बन गया - विद्या रायकवार

नर्मदा नदी की गोद में जन्मी होशंगाबाद के शनिचरा गाँव की १५ वर्षीय विद्या रायकवार ने कब तैरना सीखा, ठीक-ठीक उसे भी याद नहीं है। उसका जन्म नदी के किनारे हुआ और वह अक्सर नदी के घाट पर जाती रही। तैरना उसका शगल था। अब उसका शगल ही उसका कैरियर बन गया है।
एक दर्जन से अधिक प्रतियोगिताओ में राष्ट्रीय स्तर पर पदक लेन वाली विद्या की माली हालत बहूत बुरी है। उसके पिता बस कंडक्टर हैं। माँ का स्वर्गवास हो चुका है। ऐसी हालत में हो सकता था, गाँव की यह प्रतिभा गाँव में ही दम तोड़ देती। यदि ग्रामीण युवा केन्द्र के माध्यम से खेल प्रतिभाओं की तलाश कर रहे देवेन्द्र गुप्ता, संजीव गुप्ता और मोहन शाक्य की नजर इस पर नहीं जाती। उन्होंने विद्या से बात की। बकौल विद्या 'मैं अकादमी में नहीं आना चाहती थी। '
लेकिन जब देवेन्द्र गुप्ता और नरेन्द्र शाक्य ने अकादमी के सम्बन्ध में रायकवार को विस्तार से बताया फ़िर वह तैयार हो गई। और वह भोपाल स्थित 'वाटर स्पोर्ट्स अकादमी' आ गई। यहाँ तैराकी के लिय अलग विभाग नहीं होने की वजह से उसने 'वाटर स्पोर्ट्स क्योकिंग - कैनोइंग' को अपनाया। कम समय के अभ्यास में हीं विद्या ने इस ने खेल में भी अपनी जगह बना ली है। विद्या के कोच देवेन्द्र गुप्ता उसके प्रदर्शन से बेहद खुश हैं। वह कहते हैं- 'मुझे विश्वास है, एक दिन यह हमारे अकादमी का नाम रौशन करेगी। '
विद्या की दोनों बहने (पूजा - रोइंग और नंदा - सेलिंग ) वाटर स्पोर्ट्स अकादमी में उसके साथ हीं हैं।

बुधवार, 4 जून 2008

रफ़्तार ड़ॉट कॉम ...

पिछले कुछ महीनों में इंटरनेट जगत में हिंदी की पैठ बहुत तेजी से बढ़ी है। दर्जनों नयी वेबसाइट, हजारों नये ब्लॉग के साथ भारी संख्या में हिंदी प्रेमी लोग, लेखक, विचारक, पत्रकार और देश–विदेश के मीडिया समूह इंटरनेट पर हिंदी के इस नये उभार के साथ तेजी से जुड़ते जा रहे हैं। रफ़्तार इन सभी प्रयासों को साझा मंच प्रदान करने तथा हर हिंदीभाषी को इंटरनेट के नये संसार से जोड़ने की सबसे उन्नत तथा अनूठी पहल है
समूचे हिंदी जगत को यदि किसी एक ही साइट पर खंगाला जा सकता है तो वह है रफ्तार डॉट इन। रफ्तार के माध्यम से हिंदी इंटरनेट के अथाह जगत की संपूर्ण गतिविधियों तक सरलता से पहुंचा जा सकता है। इंटरनेट यूजर की जरूरतों और पसंद के साथ रफ्तार ने तारतम्य बिठाया है और इसी के तहत गानों, समाचार, ब्लॉग, मनोरंजन और साहित्य की खोज को रफ्तार में प्रमुखता दी गई है।
रफ़्तार डॉट इन (http://www.raftaar.in/) की अनेकों विशेषताओं में से प्रमुख है कि यह हिंदी का पहला संपूर्ण सर्च इंजन है। एक ऐसा सर्च इंजन जो इंटरनेट उपभोक्ता को हिंदी के असीमित संसार से जोड़ता है। समाचार से ले कर साहित्य तक एवं विज्ञान से ले कर किचन तक, रफ़्तार डॉट इन (http://www.raftaar.in/) इंटरनेट पर मौजूद हिंदी का सारा कंटेट आपको उपलब्ध करवाता है।
सर्च इंजन के अलावा रफ़्तार डॉट इन (http://www.raftaar.in/) पल–पल की घटनाएं और खबरें एक साथ एक होमपेज पर आपको मुहैया करवाता है। देश, दुनिया, खेल, कारोबार, विचित्र, जुर्म, साहित्य, देसी–विदेशी फिल्मी दुनिया से संबंधित समाचार अब देश की राष्ट्रभाषा में एक क्लिक की दूरी पर हैं।
इस पहल के कर्ताधर्ता हैं विख्यात अर्थशास्त्री और कंपनी के चेयरपर्सन डॉक्टर लवीश भंडारी एवं रफ़्तार डॉट इन (http://www.raftaar.in/) के निदेशक और सह संस्थापक पीयूष बाजपेई। डॉक्टर लवीश का कहना है, ''रफ़्तार उस कस्बाई व्यक्ति की जरूरतों को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है जो अंग्रेज़ी नहीं जानता मगर इंटरनेट का प्रयोग करना चाहता है।'' कहते हैं पीयूष, ''रफ़्तार युवाओं को ध्यान में रख कर बनाया गया है जो सूचना और मनोरंजन के असीमित संसार से अपनी भाषा में जुड़ना चाहता है। संभवतः यही वजह है कि इसमें मनोरंजन और जीवनशैली को खास तवज्जो दी गई है।'' पीयूष के अनुसार, भविष्य में इसमें किए जाने वाले बदलाव भी इंटरनेट प्रयोग करने वाले की अभिरुचि एंव जरूरत के अनुसार ही किए जांएगे।
इंटरनेट जगत में हिंदी में मौजूद सभी राशियों का राशिफल एक साथ यहां पढ़ सकते हैं। नए और पुराने, सभी तरह के गानों, के अलावा तस्वीरों (फोटो) संबंधी आपकी खोज यहां आ कर पूर्ण हो जाती है।
हिंदी इंटरनेट जगत का नया प्रयोग यानी ब्लॉगिंग को यहां विशेष स्थान दिया गया है। रफ़्तार के होमपेज का एक महत्वपूर्ण कोना सिर्फ ब्लॉगिंग को समर्पित है।
कारोबार और बाजार पर हिंदी का बढ़ता असर यहां भी दिखाई दे रहा है। इसीलिए, कारोबार और शेयर बाजार की खबरों के अतिरिक्त सेंसेक्स सूचकांक को भी यहां प्रमुखता से जोड़ा गया है।
दरअसल, रफ़्तार आगाज है इंटरनेट पर अंग्रेजी के एकाधिकार की समाप्ति का। अब समय आ गया है कि हम इंटरनेट से अपनी भाषा में अपनी आवश्यकताएं पूरी कर सकें!


-विशेष जानकारी के लिए आप फोन कर सकते हैं- 011-42512400

मंगलवार, 3 जून 2008

वाह तुमने कमाल कर दिया अफरोज आलम 'साहिल'



अफरोज भाई मीडिया स्कैन नामक पत्रिका से जुडे हैं।
उनके द्वारा आर टी आई को लेकर किया गया आन्दोलन (मैं तो आन्दोलन ही कहता हूँ, आप चाहे तो कुछ और नाम दे दें। ) काबिले तारीफ़ ही नहीं, काबिले गौर भी है। उन्होंने आर टी आई के माध्यम से जो जानकारी निकाली है, आपके नजर करता हूँ। साथ में यह जरूर कहना चाहूंगा कि आर टी आई एक बहुत बड़ा हथियार है, यदि हम उसका इस्तेमाल जानते हैं ।










रविवार, 1 जून 2008

यमुना पर कपिल की एक कविता

कपिल मिश्रा एक युवा है. समाज के लिय सोचने वाली जो आज नई पौध खडी हुई है, उनमें शमिल है. समाजसेवी राजेन्द्र सिंह राणा के 'यमुना सत्याग्रह' में सहभागी है. इस बार इस युवा समाजसेवी की एक कविता:-

हम लोग है ऐसे दीवाने , हम नदी बचाने आये है
तेरा खेलगांव एक साजिश है, हम इसे मिटने आये है

ये नदी नहीं तो क्या दिल्ली,
क्या जीवन क्या सरकार तेरी
ये नदी बिना क्या जीत तेरी,
ये नदी बिना क्या हार मेरी
तुम चांदी की खनक मॆं खोये हुए, हम शंख बजाने आये है I हम लोग ...

यहाँ माल बने यहाँ मयखाने,
ये ख्वाब है या एक पागलपन
ये कुछ भी हमें मंजूर नहीं,
तुझे होश दिलाने आये है I हम लोग ...

यहाँ पेड लगे, यहाँ खेत जुते,
यहाँ पानी हो और हो जीवन
तेरा खेलगांव कहीं और सही,
तुझे ये समझाने आये है I हम लोग ...

तुम नींद में ऐसे खोये हो,
ये स्वप्न नहीं, बेहोशी है
हम सूरज लेकर हाथो में,
तुझे आज जगाने आये है I हम लोग ...

जहाँ भूख से मरती हो जनता,
जहाँ प्यास से मरती हो जनता,
और नेता खेल की बात करें
तब वक़्त है आगे आने का
चलो मिलकर दो दो हाथ करे

ये जनता तुझे ठुकरायेगी, वो दिन भी ज्यादा दूर नहीं
ये जनता की अदालत है, तुझे याद दिलाने आये है I हम लोग ...

हम नदी बचाने आये है

- कपिल मिश्रा , यूथ फॉर जस्टिस

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम