शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

नीलाम्बुज की गजलनुमा कविता


पेट की आग को आंसू से बुझाया न करो
ये कतरे खून के हैं इनको यूं जाया न करो

अगर होता है ज़ुल्म-ओ-ज़ोर तो लड़ना सीखो
सिर कटाया न करो गरचे झुकाया न करो

फिजा यहाँ की सुना है बड़ी बारुदी है
बातों बातों में अग्निबान चलाया न करो

गिरे आंसू तो कई राज़ छलक जायेंगे
अपनी आंखों को सरे आम भिगाया न करो

लोग कहने लगें कि "आप तो गऊ हैं मियां"
करो वादे मगर इतने भी निभाया न करो

एक बस्ती है जहाँ पर सभी फ़रिश्ते हैं
तुम हो इंसान देखो उस तरफ़ जाया न करो
(दाद तो देते जाएँ सरकार )

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

मैली हो गई 'माँ'

नेहरू विहार (तिमारपुर - दिल्ली) के नाले पर कई बार लोगों को नतमस्तक होकर यमुना के भ्रम में सिक्का फेंकते हुए देखा है।
इस बार आगरा में यमुना ब्रिज को पार करके एत्मौद्ददौला जाते हुए एक बार मैं भी भ्रम में आ गया था. फर्क इतना था कि इस बार जो बह रही थी वह यमुना नदी थी और मुझे भ्रम नाले का हुआ।
वैसे पैसा 'यमुना एक्शन प्लान' के नाम पर यमुना नदी में भी कम नहीं बहा है. ना जाने इन तमाम एक्शन प्लानों के नाम पर कितनी कोठे -कोठियां भर गई लेकिन गंगा-यमुना-गोदावरी की स्थिति नहीं सुधरी. यह वही देश है जहां गमुना-गंगा को माँ का दर्जा मिला है.

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

कम से कम बद्दुआ ही देते जाओ -०९९१०४५३३८६-०९९९९४२८२१३

शंभू शिखर मेरे दोस्त का नाम है. वह पिछले दिनों राजघाट के पास एक दुर्घटना का शिकार हुआ और डाक्टर ने एक महीने बिस्तर पर रहने की सलाह दे डाली. अब शंभू जिसे हमेशा भागने की आदत है .. यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ. इस तरह तो फंस गया - अब भी वह कभी-कभी जीद कर बैठता है- उसे बाहर जाना है. शंभू का थोडा परिचय- वह २००२-०५ तक दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रतियोगिताओं में नजर आता रहा. खूब इनाम बटोरे. लाफ्टर चैलेंज (स्टार वन) में भी नजर आया. उसके बाद दिल्ली से पटना तक के लाफ्टर के कार्यकमों में वह दिखने लगा. जब मैंने पूछा 'बीमारी में तो खूब सारे फोन आ रहे होंगे तुम्हारे पास दुआ-सलाम के', शंभू ने अपने लाफ्टर अंदाज में कहा- 'दुआ की कौन कहे, बद्दूआ वाले फोन भी नहीं आ रहे.' अब मैं शंभू के लिय क्या कर सकता हूँ, इतना तो कर ही सकता हूँ कि उसका नंबर आपको बता दूँ. और दुआ-बद्दुआ- सलाम (आप चाहें तो कर सकें) --- ०९९१०४५३३८६-०९९९९४२८२१३ शंभू दिल्ली में है. आप उससे बात कर सकते हैं - जानते हों फ़िर भी और ना जानते हों फ़िर भी.
वह बुरा नहीं मानेगा। विश्वास रखिए। (हा हा हा हा ...)

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

भव्य केतन वासुदेव

उसका नाम भव्य केतन वासुदेव है। सभी दोस्त प्यार से उसे भव्य के नाम से ही बुलाते हैं। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज में एमए का छात्र है। इससे पहले उसने महाराजा अग्रसेन कॉलेज से पत्रकारिता की पढ़ाई की। उसके बाद अब वह इतिहास की पढ़ाई कर रहा है। लेकिन इतिहास पढ़ते हुए उसने ‘पत्रकारिता’ को पीछे नहीं छोड़ा। आज वह एक नायाब तरीके से अपनी बात दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर के छात्रों के समक्ष रख रहा है।
भव्य अपनी बात कहने के लिए उन लेखकों का सहारा लेता है, जो उसकी बात तथ्यों और संदर्भो के साथ लिख रहे हैं। पढ़ने में भव्य की रूची गहरी है। वह नियमित अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अतिरिक्त दर्जनों पत्र-पत्रिकाएं और किताबें पढ़ता है। इन मुद्रित सामग्रियों में जहां उसे कोई ऐसी बात लगी, जिसे उसकी समझ से अन्य दोस्तों तक जाना चाहिए, वह फौरन उसकी फोटो कॉपी कराकर दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों और कॉलेजों के नोटिस बोर्डों पर चिपका आता है। उसके द्वारा चिपकाई गई अधिकांश सामग्रियां किसी एक विचारधारा से प्रेरित जान पड़ती हैं। लेकिन भव्य के काम की खासियत यह है कि वह किसी बैनर के नीचे खड़े होकर यह काम नहीं करता। वह किसी छात्र अथवा किसी वैचारिक संगठन के आन्दोलन का हिस्सा नहीं है। वह गोष्ठीयों और सेमिनारों में जाना भी पसंद नहीं करता। उसके परिवार का भी किसी प्रकार के संगठन से कुछ लेना-देना नहीं है। भव्य के अनुसार- वह अपने इस काम को आत्म-प्रेरणा से करता है।रामजस कॉलेज में इतिहास का छात्र राघव पूरी तरह से भव्य के विचारों से सहमत नहीं होने के बावजूद नोटिस बोर्डस पर पर्चा चिपकाने में उसकी मदद करता है क्योंकि इस काम के प्रति भव्य की प्रतिबद्धता उसे पसंद है।जब भव्य से पूछा कि ‘क्या तुम्हारे चिपकाए हुए इन पर्चों को छात्र पढ़ते भी हैं? या फिर यह यूंही नोटिस बोर्ड्स की शोभा बढ़ाता रह जाता है?’भव्य का जवाब था- ‘चिपकाए गए पर्चे आम-तौर पर अगले दिन फटे हुए मिलते हैं। इसका मतलब उसे पढ़ा गया है। बात किसी के मन माफिक नहीं होगी तो उसे फाड़ दिया गया।’‘यदि तुम्हारे चिपकाए पर्चे कोई फाड़ दे फिर तुम क्या करते हो?’‘करना क्या है, जिस पर्चे को फाड़ा गया है, उस पर्चे की दूसरी कॉपी कराके एक बार फिर वहीं चिपका आते हैं।’भव्य का जवाब बहूत सुन्दर लगा।भव्य की अपनी बात कहने का यह आग्रह काबिले गौर ही नहीं काबिले तारीफ भी है। हो सकता है, भव्य ‘क्या कहता है?’ इस बात से कुछ लोगों की असहमति हो लेकिन वह ‘किस प्रकार कहता है?’ इसकी तारीफ…. मुझे विश्वास है, उसके विचारों की आलोचना करने वाले भी करेंगे।

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

चड्डी वालियां वर्सेस चड्डे वाले

प्रमोद मुतालिक और गुलाबी चड्डी अभियान चला रही (Consortium of Pubgoing, Loose and Forward Women) निशा (०९८११८९३७३३), रत्ना (०९८९९४२२५१३), विवेक (०९८४५५९१७९८), नितिन (०९८८६०८१२९) और दिव्या (०९८४५५३५४०६) को नमन. जो श्री राम सेना की गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ होने के नाम पर देश में वेलेंटाइन दिवस के पर्व को चड्डी दिवस में बदलने पर तूली हैं. अपनी चड्डी मुतालिक को पहनाकर वह क्या साबित करना चाहती है? अमनेसिया पब में जो श्री राम सेना ने किया वह क्षमा के काबिल नहीं है. लेकिन चड्डी वाले मामले में श्री राम सेना का बयान अधिक संतुलित नजर आता है कि 'जो महिलाएं चड्डी के साथ आएंगी उन्हें हम साडी भेंट करेंगे.'
तो निशा-रत्ना-विवेक-नितिन-दिव्या अपनी-अपनी चड्डी देकर मुतालिक की साडी ले सकते हैं. खैर इस आन्दोलन के समर्थकों को एक बार अवश्य सोचना चाहिए कि इससे मीडिया-मुतालिक-पब और चड्डी क्वीन बनी निशा सूसन को फायदा होने वाला है. आम आदमी को इसका क्या लाभ? मीडिया को टी आर पी मिल रही है. मुतालिक का गली छाप श्री राम सेना आज मीडिया और चड्डी वालियों की कृपा से अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सेना बन चुकी है. अब इस नाम की बदौलत उनके दूसरे धंधे खूब चमकेंगे और हो सकता है- इस (अ) लोकप्रियता की वजह से कल वह आम सभा चुनाव में चुन भी लिया जाए. चड्डी वालियों को समझना चाहिए की वह नाम कमाने के चक्कर में इस अभियान से मुतालिक का नुक्सान नहीं फायदा कर रहीं हैं. लेकिन इस अभियान से सबसे अधिक फायदा पब को होने वाला है. देखिएगा इस बार बेवकूफों की जमात भेड चाल में शामिल होकर सिर्फ़ अपनी मर्दानगी साबित कराने के लिए पब जाएगी. हो सकता है पब कल्चर का जन-जन से परिचय कराने वाले भाई प्रमोद मुतालिक को अंदरखाने से पब वालों की तरफ़ से ही एक मोटी रकम मिल जाए तो बड़े आश्चर्य की बात नहीं होगी. भैया चड्डी वाली हों या चड्डे वाले सभी इस अभियान में अपना-अपना लाभ देख रहे हैं। बेवकूफ बन रही है सिर्फ़ इस देश की आम जनता.

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

हरिद्वार में रावण राज

हाल में ही हम कुछ दोस्त हरिद्वार गए. वहाँ एक जगह 'रावण राज' का यह पोस्टर देख कर सभी दोस्त देर तक हँसे. एक साथी की बात 'पूरे देश में तो था ही अब हरी की नगरी में भी इनका (रावण) ही राज कायम हो गया.'सच-सच कहिए- क्या पोस्टर देखने के बाद सम्राट गिल्विस (शक्तिमान वाले) याद नहीं आते- तो मान लें सरकार - अँधेरा कायम है. (हूजूर अँधेरा कायम रहेगा - आपका क्या ख्याल है?) डरता हूँ ना जाने किस तरफ़ से कौन सा शिबू सोरेन खडा हो जाए और फतवा (धर्माज्ञा) जारी कर दे कि हमारे राज में कोई रावण का पुतला नहीं जलाएगा. जलाई जाएँगी सिर्फ़ गरीब की झोपडियां.

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम