सोमवार, 30 मार्च 2009

यह 'देवी' कौन हैं?






बिहार में सुपौल से खगडिया जाते हुए, रास्ते में मिलने वाले एक लाइन होटल (ढाबा) पर दिखी इस तस्वीर पर निगाह रूक सी गई. वजह यह कि आज से पहले जिन तस्वीरों को मालायुक्त देखा था, वह या तो किसी इश्वर की तस्वीर थी, अथवा किसी मृतात्मा की. हमारे साथ जा रहे एक साथी के शब्दों में जिसने इस तस्वीर पर माला डाली है, वह कोई दार्शनिक प्रवृति का व्यक्ति रहा होगा. चूकि उसने पुष्पहार इस बाला के गले में डाल कर जीवन का वरन किया है।
खैर, यह तो हुई बतकही की बात लेकिन आपमे से कोई इन 'देवी' को जानता हो तो कृपया इनका परिचय जरूर दें.

रविवार, 29 मार्च 2009

'राजधानी' भी सुरक्षित नहीं रही


२१ मार्च की सुबह ३ बजे दिल्ली से पटना जाते हुए, पटना-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में अचानक भगदड़ मची. क्या हुआ? जब जानने की कोशिश की तो पता चला, पेंट्री कार के डब्बे में आग लगी है. जानमाल की क्षति नहीं हुई है. राजधानी में मार्च महीने में घटी यह आगजनी की दूसरी बड़ी घटना थी. इश्वर कृपा से दोनों घटनाओं में किसी के जान माल की क्षति नहीं हुई. पहली घटना ०८ मार्च २००९ (दिन रविवार) को घटी थी. राजधानी इस देश की सबसे अच्छी ट्रेन है. यदि वहां भी आलम अन्य ट्रेनों जैसा ही है तो स्थिति शर्मनाक ही कही जाएगी. राजधानी ने अपने सुविधा में कटौती पहले ही कर दी है और उसके बावजूद यदि यात्रा भी सुरक्षित नहीं होती तो कोई क्यों इसकी यात्रा करे_ अन्य किसी भी ट्रेन से अधिक किराया देकर?

गुरुवार, 19 मार्च 2009

एक्स-वाई कथा

एक्स-वाई किसी दूसरे ग्रह से आए जीव नहीं हैं, यह हमारे-आपके बीच से निकले हैं. कहते हैं ना, 'हरी अनंत-हरी कथा अनन्ता'. उसी प्रकार एक्स-वाई अनंत हैं और उनकी कथा अनन्ता. हक़
एक्स-वाई के बार-बार फोन से तंग आ गई थी। तंग आकर एक दिन (३० जनवरी २००८, रात १० बजकर ०८ मीनट पर) कह दिया- 'तुम्हारी तरह मेरी जिंदगी में १८ लोग और हैं।'यह एक ऐसा ब्रह्म-अस्त्र-वाक्य था जो किसी भी प्रेम की ह्त्या कर सकता था। अथवा अपने साध्य के प्रति नफ़रत से भर सकता था। लेकिन अपना वाई तो किसी और मिट्टी का बना था। वह खुश था, चूंकि एक्स के प्रेम के १९ वें हिस्से पर उसका हक़ अब भी जो बरकरार था। (याद कीजिए 'हमारा दागिस्तान' के लेखक रसूल हमजातव को- 'अगर हजार आदमी करते होंगे तुमसे प्यार तो उनमें एक होगा रसूल हमजातव।')

बुधवार, 11 मार्च 2009

गाँधी, किंगफिशर और माल्या

अंततः किंग फिशर वाले भाई साहब विजय जी माल्या गांधी जी के चश्मे को 'फिरंगियों' के हाथों से बचा लाए. चीयर्स...सोचा था इसकी वापसी की खुशी में भारत में जश्न होगा. शेम्पेन की एक-आध बोतलें खुलेंगी. और चीयर लीडर्स टी वी स्क्रीन पर 'दे दी हमें आज़ादी बिना खडग, बिना ढाल'... के बोल पर थिरकेंगी. और इनका नेतृत्व कर रही राखी सावंत 'आज के समय में गांधी कितने प्रासंगिक' विषय पर तमाम खबरिया चैनलों पर बौधिक झाड़ रही होंगी. सो सेड -वेरी बैड. ऐसा नहीं हुआ.

गुरुवार, 5 मार्च 2009

पागल की डायरी

इन दिनों एक लम्बी कहानी पर काम कर रहा हूँ, एक्स-वाई की कहानी- यह कहानी स्त्री-पुरूष के अंतर्व्यक्तिक संबंधों पर आधारित है. इसकी एक मुख्य किरदार की मौत को आज एक साल हो गए. कहानी को 'अनगढे' रूप में पढ़ने वाले मेरे कुछ मित्रों का मानना है, मेरी कहानी के किरदार एक्स की मौत कैसे हो सकती है क्योंकि एक्स कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक प्रवृति नाम है. और प्रवृति कभी मरा नहीं करती. मेरे दोस्त नहीं जानते की मैं क्या खाकर एक्स की मौत को लिखता. अपने मौत की घोषणा से लेकर तारीख तय करने तक का काम एक्स ने खुद तय किया है. मैं वेद व्यास की इस कथा में सिर्फ गणेश की भुमिका में हूँ. बहरहाल, हिन्दू रीती-निति में की गई पुनर्जन्म की व्यवस्था में मेरी गहरी आस्था है.
कहानी का एक अनगढ़ पृष्ठ
आज एक्स की मौत को एक साल हो गए. पिछले साल ६ मार्च (शिवरात्रि के दिन) को उसकी मौत हुई थी. आज भी एक्स का दिया हुआ वह ५०० रूपये का नोट वाई ने संभाल कर रखा है. जिसकी वजह से अब वह एक्स का आजीवन 'उधारमंद' है. आपने कांचा इलैया का नाम सुना है. क्या आप 'सहादत' हसन मंटो (एक्स के लिए सआदत हमेशा सहादत ही रहे) को जानते हैं। खैर, वह किस्सा कभी और। एक्स पर पालागुमी साईनाथ का रंग चढ़ गया था. जब उसने प्रवीर से विदा लेकर शिवानी के 'कृष्णकली' का अंतिम अध्याय लिखा. वाई उस वक्त बेहद डर गया था. अर्थात किस्सा ख़त्म. लेकिन यह उसकी भूल थी. शो मस्ट गो ऑन. 'कृष्णकली' को कल्याणी का रूप लेने में अधिक वक्त नहीं लगा. वाई इसका चश्मदीद बना. 'तुम्हारी तरह १८ लोग और हैं मेरी जिंदगी में'. अब वाई ने तय कर लिया है- राजकमल चौधरी की 'मछली मरी हुई' को वह फिर से लिखेगा. इस बार कल्याणी डाक्टर रघुवंश की नहीं निर्मल पद्मावत की होगी. और किताब का नाम होगा- 'मछली की आँख'.

नग्नता के बाहर 'मकबूल'





जब भी हम मकबूल फ़िदा हुसैन की चर्चा करते हैं, हमारे जेहन में उनके द्वारा बनाई गई हिन्दू-देवताओ की नग्न तस्वीरें आती हैं। इसके बाहर जो उनका काम है, उस पर कोई चर्चा नहीं करता. कुछ-कुछ उसी प्रकार जैसे मनु संहिता में वर्णित कुछ विवादित श्लोको के बाहर कभी उस पर गंभीरता से चर्चा नहीं हुई. खैर, इस बार आप मकबूल की कुछ उम्दा तस्वीरों से रू-बा-रू हों. जिन्हें उपलब्ध कराया है, इलाहाबाद दैनिक हिन्दुस्तान में उपसंपादक मरिंदर मिश्रा (०९९५३९९७६१५) ने.

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम