बुधवार, 28 नवंबर 2012

शेर का राज माने जंगल राज!

तुम कहते हो वह शेर था,
फिर पिंजरे में क्यों रहता था?
इतनी सुरक्षा में क्यों चलता था
और वह शेर था
तो तुम्हे मानना चाहिए, तुम्हारे राज्य में जंगल-राज है.

कमाल है तुम यह भी मानने को तैयार नहीं
और बात-बात पर
गिरफ्तार कराने को उतावले रहते हो!

1 टिप्पणी:

अनिल जनविजय ने कहा…

बहुत अच्छी कविता है। बेहद अच्छी। शाबास।

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम